दूध और सेक्स का आपसी रिश्ता
खालसा आयुर्वेदिक सैंटर, रामपुरा फूल
दूध असल में अत्यधिक
कामोत्तेजक आहार है और मनुष्य को छोड़कर पृथ्वी पर कोई पशु इतना कामवासना से
भरा हुआ नहीं सभी जानवर सेक्स संतानोपत्ती के लिये करते है लेकिन इंसान ......? ? सभी जानवर के लिये सेक्स
करने का एक समय है लेकिन इंसान के लिये कोई समय नही है और इसका एक
कारण दूध है क्योंकि कोई पशु बचपन के कुछ समय के बाद
दूध नहीं पीता सिर्फ आदमी को छोड़ कर पशु को जरूरत भी नहीं है शरीर का
काम पूरा हो जाता है सभी पशु
दूध पीते है अपनी मां का लेकिन दूसरों की माताओं का दूध सिर्फ आदमी पीता
है और वह भी आदमी की माताओं का नहीं जानवरों की माताओं का भी पीता है। दूध बड़ी अदभुत
बात है और आदमी की संस्कृति में दूध ने न मालूम क्या-क्या किया है ।
हिसाब लगाना कठिन
है बच्चा एक उम्र तक दूध पिये ये ठिक भी है इसके बाद दूध समाप्त हो
जाना चाहिए सच तो यह है जब तक मां का स्तन से बच्चे को दूध मिल सके बस
तब तक ठीक हे उसके बाद दूध की आवश्यकता ठीक नहीं है। बच्चे का शरीर बन गया
निर्माण हो गया दूध की जरूरत थी हड्डी खून मांस बनाने
के लिए ढांचा तैयार हो गया। अब सामान्य भोजन काफी
है अब भी अगर दूध दिया जाता है तो यह दूध
कामवासना का निर्माण करता है अतिरिक्त है इसलिए वात्सायन ने काम सूत्र में कहा है कि हर संभोग के बाद पत्नी को अपने
पति को दूध पिलाना चाहिए ठीक कहा है ।
दूध जिस बड़ी
मात्रा में वीर्य बनाता है और कोई चीज नहीं
बनाती है दूध से निर्मित जो भी है वह कामोतेजक है इसलिए महावीर ने कहा है
दुध उपयोगी नहीं है खतरनाक है ठीक से काम सुत्र में और महावीर की बात
में कोई विरोध नहीं है भोग के साधक के लिए सहयोगी है तो योग के साधक के लिए
अवरोध है फिर पशुओं का दूध है वह निश्चित ही पशुओं के लिए उनके शरीर के लिए
उनकी वीर्य ऊर्जा के लिए जितना शक्ति शाली दूध चाहिए उतना पशु मादाएं
पैदा करती है जब एक गाय दूध पैदा करती है तो आदमी के बच्चे के लिए
पैदा नहीं करती सांड के लिए पैदा करती है ओर जब आदमी का बच्चा पिये उस
दूध को और उसके भीतर सांड जैसी कामवासना पैदा हो जाए तो इसमें कुछ आश्चर्य
नहीं है वह आदमी का आहार नहीं है इस पर अब वैज्ञानिक भी काम करते है और
आज नहीं कल हमें समझना पड़ेगा कि अगर आदमी में बहुत सी पशु प्रवृतियां है तो
कहीं उनका कारण पशुओं का दूध तो नहीं है अगर उसकी पशु प्रवृतियों को
बहुत बल मिलता है तो उसका करण पशुओं का आहार तो नहीं है। आदमी का क्या
आहार है यह अभी तक ठीक से तय नहीं हो पाया है लेकिन वैज्ञानिक हिसाब
से अगर आदमी के पेट की हम जांच करें जैसा कि वैज्ञानिक किये है तो वह
कहते है आदमी का आहार शाकाहारी ही हो सकता है क्योंकि शाकाहारी पशुओं
के पेट में जितना बड़ा इंटेस्टाइन की जरूरत होती है उतनी बड़ी इंटेस्टाइन
आदमी के भीतर है मांसाहारी जानवरों की इंटेस्टाइन छोटी और मोटी होती है ।
आदमी को भी बहुत
मात्रा मे एक बार खाने की बजाएं छोटी छोटी मात्रा में
बहुत बार खाना उचित है वह बंदर का वंशज है और जितना शाकाहारी हो भोजन
उतना कम उतना कम कामोतेजक है जितना मांसाहारी हो उतना कामोतेजक होता
जाएगा ।
दूध मांसाहार का
हिस्सा है दूध मांसाहारी है, क्योंकि मां के
खून और मांस से निर्मित होता है शुद्धतम मांसाहार है इसलिए जो अपने को कहते
है हम गैर-मांसाहारी है कहना नहीं चाहिए जब तक वे दूध न छोड़ दे दूध
एनिमल फूड है वह नहीं लिया जा सकता लेकिन दूध तो हमारे लिए पवित्रतम है
पूर्ण आहार है सब उससे मिल जाता है लेकिन बच्चे के लिए और वह भी उसकी अपनी मां का दूसरे की मां का दूध खतरनाक है और बाद
की उम्र में तो फिर दूध मलाई और धी और ये सब और उपद्रव है दूध
से निकले हुए मतलब दूध को हम और भी कठिन करते
चले जाते है जब मलाई बना लेते है फिर मक्खन बना लेते है फिर घी बना लेते
है तो घी शुद्धतम कामवासना हो जाती है और यह सब अप्राकृतिक है और इनको आदमी
लिए चला जाता है। निश्चित ही उसका आहार फिर उसके आचरण को प्रभावित करता है
जब शक्ति शांत बनती है तो भीतर बहती है और जब शांति भी शक्ति बन जाती
है तो बाहर बहनी शुरू हो जाती है।
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