Wednesday, February 6, 2013

Know Something About Jaundice (Hepatitis) as it is very Dangerous


बहुत खतरनाक है पीलिया (हेपेटाइटिस)

भारत में आज चार करोड़ से ज्यादा लोग हेपेटाइटिस यानि पीलिया के वायरस के शिकार हैं। हेपेटाइटिस हर साल हमारे देश में 1000 लोगों की जान ले लेती है। इस बीमारी और इसके संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावी उपचार मौजूद हैं, लेकिन फिर भी लोग इसका शिकार बनते जा रहे हैं। इसके पीछे वजह है अज्ञानता और गंभीर बीमारी की भयावहता को समझने में हमारी विफलता। इसी के चलते हेपेटाइटिस का राक्षस लगातार विकराल रूप धारण किये जा रहा है।
अगर आम बोलचाल की भाषा का जिक्र करें तो हेपेटाइटिस लिवर में होने वाली सूजन का नाम है। चिकित्सीय भाषा में ऐसी सूजन के सामान्य कारणों में हेपेटाइटिस वायरस ए,बी,सी,डी और ई को दोषी माना जाता है, जो यकृत पर हमला कर उसकी कोशिकाओं को खत्म कर देते हैं।
हेपेटाइटिस ए और ई वायरस संक्रमित खान-पान से फैलता है। यहअमूमन चार से छह हफ्ते में खत्म हो जाती है। इसे आम भषा में पीलिया रोग या जॉन्डिस कहा जाता है।
हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी वायरस यकृत (लिवर) पर हमला कर उसे खोखला बना देते हैं और लिवर सिरोसिस एवमं लिवर कैंसर की वजह बनते हैं। कई मायनों में यह बीमारी एचआईवी एड्स से भी ज्‍यादा खतरनाक है। हेपेटाइटिस बी का वायरस एचआईवी के वायरस से 50 से 100 गुना ज्यादा संक्रमण करता है। विडंबना यह है कि हेपेटाइटिस बी पर भी आसानी से काबू पाया जा सकता है और इसके टीके बीते तीस साल यानी 1982 के बाद से बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन, हेपेटाइटिस बी के शिकार होने वाले लोगों की संख्या आज भी तेजी से बढ़ रही है। हेपेटाइटिस बी की रोकथाम के लिए 1980 और 1990 के दशक में 150 से ज्यादा देशों ने अपने यहां प्रतिरक्षण कार्यक्रम चलाए। आज अमेरिका, यूरोप और जापान से यह बीमारी लगभग समाप्त हो चुकी है, लेकिन भारत में हेपेटाइटिस बी वायरस का संक्रमण लगातार फैल रहा है।
हेपेटाइटिस बी के संबंध में ‘उपचार से बेहतर बचाव है’ वाली उक्ति भी सटीक नहीं बैठती। हेपेटाइटिस बी वायरस को पता लगाने के लिए प्रभावी रक्त परीक्षण उपलब्ध है। कई दवाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा जो लोग इस वायरस से संक्रमित नहीं है, उनके बचाव के लिए कई सस्ते और उपयोगी टीके उपलब्ध हैं।
तो, फिर आखिर हेपेटाइटिस के फैलने के लक्षण क्‍या हैं। क्‍यों यह लिवर को नुकसान बनाते हुए लोगों को लिवर किरोसिस और कैंसर की चपेट में ले रहा है? दरअसल, भारत ने हेपेटाइटिस बी टीकाकरण प्रतिरक्षण कार्यक्रम क़ी शुरुआत दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले देर से की। और हमें उसी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। फिर एक बड़ी वजह वैज्ञानिक खोजों को सामाजिक उपयोग में लाने की नाकामी है। जागरुकता की कमी का आलम यह है कि भारत का पढ़ा-लिखा वर्ग भी हेपेटाइटिस की गंभीरता से अंजान बना रहता है।
हममें से कइयों को मालूम ही नहीं है कि हेपेटाइटिस बी वायरस कई तरीकों से फैल सकता है। इनमें लार, वीर्य और योनि द्रव्य सहित अन्य शरीर द्रव्यों के माध्यम से भी इसका फैलना शामिल है। वैसे, वैज्ञानिकों को भी अभी काफी लंबा सफर तय करना है। वे अभी भी हेपेटाइटिस ई और हेपेटाइटिस सी वायरस के लिए वैक्सीन बनाने से दूर हैं। हेपेटाइटिस सी का उपचार 6 से 12 महीने तक लगातार चलता है, और इसकी महंगी दवाएं आम लोगों की जेब पर खासा असर डालती हैं।
दरअसल, विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर इस गंभीर बीमारी की गंभीरता को समझने की ही जरुरत है, जिससे हम अभी तक अंजान हैं। इस बीमारी से निपटने के लिए सबसे ज्यादा जरुरत जागरुकता फैलाने की है। हेपेटाइटिस के मामले में बीमारी की पहचान होने भर से 80 फीसदी मामलों में बचाव किया जा सकता है। सिर्फ छोटी कोशिशों के बूते आम नागरिक इस बीमारी से खुद की और अपने प्रियजनों की रक्षा कर सकता है। स्कूलों की जिम्मेदारी है कि वो अपने बच्चों को इस बीमारी से अवगत कराएं। इस दिन अगर हम कुछ अनूठे उपाय करें तो वो भी बीमारी से निपटने की दिशा में सार्थक भूमिका निभा सकते हैं। मसलन-हम अपने परिवार के बीच हेपेटाइटिस बी के टीके उपहार स्वरुप दे सकते हैं।
हेपेटाइटिस डी वायरस अकेला हमारे शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचा सकता।

                                         

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